BA Semester-3 DarshanShastra - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2642
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 7

नीतिशास्त्र की प्रकृति, क्षेत्र एवं सिद्धान्त

(Nature, Scope and Theory of Ethics)

 

प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।

अथवा
नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त हैं। व्याख्या कीजिए।
अथवा
नीतिशास्त्र के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

नीतिशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Ethics)

किसी भी विज्ञान या शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है कि उसकी एक परिभाषा निश्चित कर ली जाए। परिभाषा के निर्धारण से यह स्पष्ट हो जाता है कि अध्ययन की सीमा क्या है? सीमा में अध्ययन करना सदैव सरल होता है। अतः परिभाषा का निर्धारण किसी भी विज्ञान की प्रथम मूलभूत आवश्यकता है।.

नीतिशास्त्र को अंग्रेजी में इथिक्स (Ethics) कहा जाता है। शब्द विज्ञान के अनुसार, व्युत्पत्ति के आधार पर यह ग्रीक भाषा के Ethos (एथौस) शब्द से बना है। ग्रीक भाषा में Ethos से तात्पर्य चरित्र (Character) से होता है। अतः शाब्दिक अर्थ के अनुसार, मनुष्य के चरित्र से सम्बन्धित ज्ञान के अध्ययन के विज्ञान को नीतिशास्त्र कहा जाता है।

नीतिशास्त्र को Moral Philosophy के नाम से भी जाना जाता है। मॉरल (Moral) शब्द लैटिन भाषा के मोर्स (Mores) से लिया गया है। मोर्स का अर्थ रीति-रिवाज अथवा अभ्यास है। अतः शाब्दिक अर्थ में नीतिशास्त्र को रीति-रिवाज अथवा अभ्यास का शास्त्र कहा जा सकता है। अन्य शब्दों में, नीतिशास्त्र वह विज्ञान है जो मनुष्यों के अभ्यास तथा रीति-रिवाज से सम्बन्धित है।

नीतिशास्त्र परम शुभ के विज्ञान के रूप में - नीतिशास्त्र को कुछ विद्वान परम शुभ का विज्ञान मानते हैं। जेम्ससेथ के अनुसार, "शुभ के विज्ञान के रूप में यह आदर्श और चाहिए का सर्वोत्कृष्ट विज्ञान है।' 

इस कथन की व्याख्या इन शब्दों में की जा सकती है नीतिशास्त्र मनुष्य के कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का विचार करता है। यह नैतिकता का शास्त्र है तथा आचार के आधार पर नैतिक निर्णय देता है। व्यक्ति का आचार प्रयोजनमय होता है तथा वह स्वतन्त्र संकल्प से सम्बद्ध होता है। यह शास्त्र व्यक्ति के आचार के विषय में नैतिक ज्ञान देता है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि चरित्र का उचित एवं अनुचित निर्णय किस प्रकार किया जा सकता है? इस कथन की व्याख्या करने के लिये कहा गया है कि मानवीय जीवन के आदर्शों के आधार पर इसका निर्धारण किया जा सकता है। शुभ भी निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं -

(1) परम शुभ,
(2) तात्कालिक शुभ।

तात्कालिक शुभ का महत्व सीमित होता है तथा उसके शुभ का महत्व परम शुभ के आधार पर होता है। परम शुभ मानवीय जीवन के आदर्शों पर विचार करता है।

नीतिशास्त्र चरित्र का विज्ञान है कुछ विद्वान नीतिशास्त्र को चरित्र का विज्ञान भी मानते हैं। परन्तु चरित्र का विज्ञान होते हुए भी यह प्राकृतिक तथा तथ्यात्मक विज्ञानों से भिन्न है।। म्यूर हैड के शब्दों में, "यह केवल काल में स्थित व्यवहार से नहीं, बल्कि वैचारिक निर्णय के आधार के रूप में व्यवहार पर निर्णय करने से है। यह निर्णय उचित अथवा अनुचित से सम्बन्धित होता है।"

मैकेन्जी के अनुसार, '‘नीतिशास्त्र की परिभाषा आचार में सत् और शुभ के अध्ययन के रूप में की जा सकती है।'

इस परिभाषा के अनुसार, सत् और शुभ दोनों को समान माना गया है। परन्तु वास्तव में सत् और शुभ में भेद है। Right लैटिन के रेक्स (Rectus) से लिया गया है जिसका अर्थ होता है सीधा, सरल अथवा नियम के अनुरूप अतः सत् का तात्पर्य उस व्यवहार से होता है जो नियम के अनुसार होता है। शुभ का अंग्रेजी पर्याय Good होता है। Good जर्मन शब्द Gat से लिया गया है जिसका अर्थ होता है जो परम शुभ के लिए उपयोगी हो। इस प्रकार शुभ उसे कहा जाता है, जो लक्ष्य की ओर ले जाए। 

नीतिशास्त्र की सहज ज्ञानवादियों की व्याख्या - सहज ज्ञानवाद में नीतिशास्त्र को सत् के विज्ञान के रूप में माना गया है। सहज ज्ञानवादियों के अनुसार, नीतिशास्त्र सत् का विज्ञान है। सत् ही मूल प्रत्यय है। इस विज्ञान के अन्तर्गत नैतिक नियमों में बाध्यता को स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार, नैतिक नियमों का पालन प्रत्येक परिस्थिति में किया जाना चाहिए। 'नैतिक नियमों के अनुसार, कार्य सत् और नियम के विरुद्ध कार्य असत् है। इसके अनुसार व्यक्ति के नैतिक कार्यों को शुभ तथा अनैतिक कार्यों को अशुभ कहा जाता है। सहज ज्ञानवादियों के अनुसार, नैतिक नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है।

नीतिशास्त्र की नियमवादी व्याख्या - नियमवादी विद्वानों ने नैतिक नियमों को सर्वाधिक महत्व दिया है। नियमवादियों के अनुसार, नैतिक नियम स्वयं साध्य हैं। वे किसी अन्य आदर्श के साधन नहीं हैं। इस विषय में काण्ट की परिभाषा मान्य है। उनके अनुसार इस सृष्टि के अन्दर और इससे बाहर भी सदिच्छा को छोड़कर दूसरी कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिसको बिना किसी शर्त के शुभ कहा जा सके।

There is nothing in world or even out of it, that can be called good with out qualification except a good will. - Kant

काण्ट के अनुसार, सदिच्छा स्वयं शुभ है। सदिच्छा नियम के अनुसार इच्छा है। नियमवादी नैतिक नियमों को स्वयं सिद्ध मानते हैं। सदिच्छा के महत्व का मूल्यांकन करने के लिए उसके परिणाम पर विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। परन्तु एक प्रश्न यह भी उठता है कि सदिच्छा क्या है? इस सम्बन्ध में काण्ट ने यह माना है कि नियमपूर्वक की गयी इच्छा ही सदिच्छा है। 

नीतिशास्त्र की प्रयोजनवादियों की व्याख्या - सहज ज्ञानवादियों तथा नियमवादियों के विरुद्ध प्रयोजनवादियों ने शुभ को ही महत्वपूर्ण परम तत्व स्वीकार किया है। उनके अनुसार, नीतिशास्त्र सत् का नहीं शुभ का विज्ञान है। उनके अनुसार कर्तव्य कर्तव्य के लिए न होकर, बल्कि इसलिए शुभ है कि वह शुभ के लिए है। प्रयोजनवादी नीतिशास्त्र मानव के परम आदर्श की खोज करता है। प्रयोजनवादियों के अनुसार, यह परम आदर्श या परम शुभ ही व्यक्ति के लिए चरम साध्य होता है। इस चरम साध्य के आधार पर ही कार्यों का शुभ-अशुभ का विचार किया जाता है। प्रयोजनवादी सिद्धान्त के अन्तर्गत गुणों की समुचित विवेचना भी की जाती है क्योंकि गुण ही चरित्र निर्माण में सहायक हैं तथा गुणों द्वारा ही परम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

नीतिशास्त्र की समन्वयवादी व्याख्या - नीतिशास्त्र की अलग-अलग व्याख्या के चलते एक समन्वयवादी व्याख्या भी प्रस्तुत की गयी है।

मैकेन्जी के अनुसार "नीतिशास्त्र आचार में सत् और शुभ का अध्ययन है।'

"In the mean time it seems sufficient to define Ethics as the Science or general study of the ideal involved in human life." -  Mackenzie J.S. A Manual of Ethics

इस परिभाषा के अनुसार, नीतिशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय व्यवहार में सत् और शुभ का व्यवस्थित अध्ययन करता है। कुछ ऐसे नियम तथा सिद्धान्त भी होते हैं, जिनके अनुसार व्यवहार करने से अनुकूल लक्ष्य की प्राप्ति होती है। संक्षेप में, मानव जीवन के समस्त लक्ष्य इस ओर संकेत करते हैं कि व्यक्ति का उद्देश्य उस परम लक्ष्य को जानना है जो हम सबके सम्पूर्ण जीवन का लक्ष्य होता है, इसी को परम शुभ कहते हैं। वास्तव में यही नीतिशास्त्र के अध्ययन का विषय है।

मैकेन्जी के अनुसार, वास्तव में नीतिशास्त्र मानव जीवन के आदर्शों का विज्ञान अथवा सामान्य अध्ययन है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
  9. प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
  11. प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
  13. प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
  14. प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
  24. प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
  27. प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
  28. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
  31. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
  32. प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
  34. प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
  40. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  41. प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  46. प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
  53. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
  55. प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
  58. प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  61. प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
  62. प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
  63. प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
  67. प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
  70. प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
  72. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
  73. प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
  75. प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
  78. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
  79. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
  80. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
  81. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
  82. प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
  83. प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
  87. प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  89. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
  90. प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
  92. प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  95. प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  96. प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
  98. प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  100. प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  103. प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
  104. प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
  105. प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  106. प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
  107. प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  108. प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
  109. प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
  114. प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
  116. प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
  120. प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
  122. प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?

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